🕯️ लेखक: अनामिका
गाँव के छोटे से घर में माँ, मैं और मेरी बड़ी बहन पूजा रहते थे। पिताजी का देहांत दो साल पहले हुआ था और तब से हमारा घर जैसे सांसें लेना भूल चुका था।
माँ की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और मेरा कॉलेज भी अधूरा था। ऐसे में परिवार की ज़िम्मेदारी पूजा के कंधों पर आ गई थी। पूजा खूबसूरत थी — बड़ी-बड़ी आँखें, गेहुँआ रंग और घने बाल। मोहल्ले के कई लड़कों की नज़रों में वह थी… मगर पूजा हमेशा सिर झुकाकर चलती थी।
एक दिन पूजा ने मुझे पास बुलाकर कहा,
“अभय… मैं अब शहर में काम करूंगी। एक मेमसाहब के घर काम मिला है। वहां रहना भी मिलेगा।”
मैंने आँखों में उम्मीद लिए सिर हिलाया… मगर पूजा जो कह रही थी, उसका सिर्फ़ आधा सच मुझे बताया गया था।
🌹 शहर की सच्चाई
पूजा ने शहर आकर एक हाईप्रोफाइल “हाउस हेल्प” के रूप में काम शुरू किया, लेकिन जल्दी ही उसे महसूस हुआ कि तनख्वाह से घर नहीं चलेगा। माँ की दवाइयाँ, मेरा कॉलेज फ़ीस और खुद का खर्च – सब कुछ मुश्किल हो चला।
तभी उसका परिचय हुआ राहुल से — एक अमीर, अकेला बिज़नेसमैन। पूजा की सादगी और खूबसूरती ने उसे आकर्षित किया।
राहुल ने उसे “क्लियर डील” दी —
“तुम मेरे साथ रहो, हर महीने 50,000 दूँगा… बाक़ी मैं संभाल लूंगा।”
पूजा ने बहुत सोचा… यह रिश्ता न प्रेम का था, न शादी का। मगर परिवार के लिए उसने हाँ कह दी।
💋 उस रात की शुरुआत
पहली रात पूजा कांप रही थी। राहुल ने उसे धीमे से छुआ, होंठों को चूमा… और फिर धीरे-धीरे पूजा ने खुद को उसके हवाले कर दिया।
वो रात सिर्फ़ जिस्म का मिलन नहीं थी, पूजा की आत्मा का संघर्ष था।
राहुल ने उसका सम्मान भी किया — वो कभी जबरदस्ती नहीं करता, पूजा की मर्ज़ी को समझता और उसका ख़्याल रखता।
हर महीने पूजा पैसे भेजती, माँ ठीक हो गई, मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल हो गया।
🌑 एक दिन मैंने पूछ लिया…
“दीदी, आप इतनी जल्दी इतना पैसा कैसे कमा रही हो?”
वो मुस्कुराई, मेरी आँखों में झांका और बोली:
“कुछ जिम्मेदारियाँ ऐसी होती हैं जिनके लिए इज़्ज़त नहीं, हिम्मत चाहिए।”
मैं चुप हो गया। उस दिन मैं अपनी बहन को सिर्फ बहन नहीं, एक देवी की तरह देखने लगा।
💌 समाप्ति
पूजा ने जिस्म दिया था, मगर अपने परिवार की आत्मा बचा ली थी।