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नमस्ते दोस्तों, मैं प्रितंका हूँ और आज मैं एक नई गर्मागर्म कहानी लेकर आई हूँ। आप सभी ने मेरी पिछली कहानियों को जितना प्यार दिया है, उसके लिए मैं आभारी हूँ। अगर आपने अभी तक मेरी दूसरी कहानियाँ नहीं पढ़ी हैं, तो कृपया उन्हें भी ज़रूर पढ़ें। चलिए, अब इस नई कहानी पर आते हैं।

कुछ दिनों पहले की बात है। मम्मी-पापा किसी दोस्त की प्रोमोशन पार्टी में गए हुए थे, इसलिए घर पर सिर्फ मैं और मेरा छोटा भाई थे। दिन बिल्कुल सामान्य गुज़र रहा था—मैं ऑफिस से लौटी, वह कॉलेज से आ चुका था। रात को मैंने खाना बनाया, साथ खाया, फिर थोड़ी देर टीवी देखने के बाद हम दोनों अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।

लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। काफी कोशिशों के बाद भी जब आँखों में नींद नहीं आई, तो मैंने सोचा कि थोड़ी देर और टीवी देख लेती हूँ। यह सोचकर मैं अपने कमरे से निकली और हॉल की ओर चल पड़ी।

मेरे भाई का कमरा रास्ते में ही पड़ता था। जब मैं उसके दरवाज़े के पास से गुज़री, तो मेरी नज़र अंदर पड़ी। मेरे पैर वहीं ठिठक गए। भाई जाग रहा था और बिस्तर पर नंगा बैठा हुआ था। उसके एक हाथ में फोन था और दूसरे हाथ में उसका बड़ा और मोटा लंड, जिसे वह धीरे-धीरे हिला रहा था।

उसे ऐसे देखकर मेरे मुँह में पानी आ गया। मेरी चूत गीली होने लगी। कुछ देर तक मैं चुपचाप उसे मस्त होते देखती रही। फिर जब मैं खुद भी गर्म हो गई, तो वापस अपने कमरे में लौट आई।

अब मैं भी अपनी चूत को सहलाने का मन बना चुकी थी। मैंने शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनी हुई थी। बिस्तर पर लेटकर मैंने अपनी चूत को शॉर्ट्स के ऊपर से ही रगड़ना शुरू किया। मेरी साँसें तेज़ होने लगीं और आँखों के सामने बस भाई का लंड घूम रहा था।

थोड़ी देर बाद मैंने शॉर्ट्स उतार दी और अपनी गीली पैंटी के ऊपर से ही अपनी चूत को रगड़ने लगी। मेरी आहें निकल रही थीं, और मैं पूरी तरह उसी ख़याल में खो चुकी थी।

तभी अचानक मुझे एक आवाज़ सुनाई दी—

“दीदी, क्या मैं इसमें आपकी मदद कर सकता हूँ?”

मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मैंने तुरंत खुद को ढकने की कोशिश की और गुस्से से पूछा, “तू यहाँ क्या कर रहा है?”

वह मुस्कुराया, “जो आप मेरे कमरे के बाहर कर रही थीं।”

मैंने जल्दबाज़ी में कहा, “लेकिन मैं अंदर तो नहीं आई ना!”

“लेकिन मैं आ गया ना,” उसने कहा। “देखो दीदी, मेरे पास लंड है, तुम्हारे पास चूत। दोनों ही प्यासे हैं। फिर क्यों ना भाई-बहन का रिश्ता कुछ पल के लिए भुला दें और इसका मज़ा लें? मैंने भी तुम्हारे बारे में सोचकर कई बार हिलाया है।”

उसकी बात सुनकर मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। मैंने थोड़ी देर सोचने का नाटक किया और फिर धीरे से कहा, “लेकिन ये बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए।”

“ये राज हमारे साथ ही दफ़न होगा,” उसने कहा और मेरे पास आकर बिस्तर पर बैठ गया।

उसने पहले मेरी जाँघों को सहलाया, फिर धीरे-धीरे ऊपर बढ़ते हुए मेरी गीली पैंटी को हटाकर मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। मैं मस्ती में डूबती चली गई। कुछ देर बाद वह ऊपर आया और मैंने उसके लंड को मुँह में ले लिया।

फिर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। हम दोनों एक-दूसरे में खो गए। उसकी हर थ्रस्ट के साथ मैं आहें भरती रही। कुछ देर बाद हम दोनों ही चरम सुख पर पहुँच गए।

उस रात के बाद से हम अक्सर ऐसे ही पलों का आनंद लेते हैं। घर का राज घर में ही रहता है, और हम दोनों को संतुष्टि भी मिल जाती है।

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